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वन विभाग की कार्रवाई पर सवालिया निशान: जांच के बजाय शराब पार्टी, वायरल वीडियो से मचा हड़कंप

जिला ब्यूरो चीफ सुखदेव आजाद
जांजगीर-चांपा ब्रेकिंग न्यूज़
वन विभाग की कार्यप्रणाली पर एक बार फिर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। जिले के खपरीडीह गांव स्थित आरा मिल की जांच में पहुंचे वन विभाग के छह कर्मचारी खुद ही संदेह के घेरे में आ गए हैं। शिकायत पर पहुंचे ये अधिकारी जब कार्रवाई करने के बजाय आरा मिल संचालक के साथ शराब पार्टी करते पकड़े गए, तो पूरा मामला शर्मनाक बन गया। इससे विभाग की कार्यप्रणाली और जवाबदेही पर गहरा प्रश्नचिह्न लग गया है।

जांच के नाम पर मेज़बानी!
ग्राम खपरीडीह में संचालित केसरवानी आरा मिल के खिलाफ अवैध लकड़ी के भंडारण की शिकायत के बाद वन विभाग की टीम जांच के लिए पहुंची थी। लेकिन वहां से जो वीडियो सामने आया, उसने विभाग की नीयत पर ही सवाल खड़ा कर दिया। वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि वनकर्मी जांच करने के बजाय मिल संचालक के साथ शराब पी रहे हैं। वीडियो में शराब की बोतलें और डिस्पोजल कप साफ नजर आ रहे हैं, जो सोशल मीडिया में वायरल हो चुके हैं।

डीएफओ ने मानी शराब सेवन की पुष्टि – पर कार्यवाही ‘शून्य’
वायरल वीडियो सामने आने के बाद डीएफओ हिमांशु डोंगरे ने सभी छह कर्मचारियों को अल्कोहल टेस्ट के लिए जिला अस्पताल भेजा, जहां रिपोर्ट में शराब पीने की पुष्टि भी हुई। इसके बावजूद अब तक न तो कोई निलंबन हुआ और न ही विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई की सूचना सामने आई है।

अवैध लकड़ी का जखीरा नजरअंदाज?
सबसे हैरानी की बात यह है कि जिस अवैध अर्जुन लकड़ी के भंडारण की शिकायत पर टीम गई थी, उस मुद्दे को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। न तो कोई जब्ती की कार्रवाई हुई, न ही आरा मिल संचालक पर कोई केस दर्ज हुआ। इससे स्पष्ट होता है कि जांच टीम की प्राथमिकता जांच नहीं बल्कि मिल संचालक की मेहमाननवाजी थी।

सवाल जो उठना लाज़मी है:

आखिर किसके निर्देश पर यह टीम भेजी गई थी और किसकी मिलीभगत से जांच की जगह शराब सेवन हुआ?

क्या विभागीय अफसरों की मिलीभगत से अवैध लकड़ी कारोबारियों को संरक्षण मिल रहा है?

जब शराब सेवन की पुष्टि हो चुकी है तो अब तक कार्रवाई क्यों नहीं?

जनता का भरोसा डगमगाया
इस पूरी घटना से साफ है कि जमीनी स्तर पर सरकारी तंत्र में गहरी लापरवाही और भ्रष्टाचार जड़ें जमाए हुए है। यदि अब भी दोषियों पर कड़ी कार्रवाई नहीं हुई, तो यह केवल वन विभाग की साख ही नहीं, बल्कि शासन-प्रशासन की जवाबदेही पर भी गहरा धब्बा होगा।

संभवत: यही वजह है कि वन्य संसाधनों की रक्षा करने वाला विभाग ही अब उन संसाधनों के दोहन में शामिल नजर आ रहा है।

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